मानसिक स्वास्थ्य कई चीजों का एक जोड़ है:
मानसिक रोग की अनुपस्थिति और जीवन के सामान्य तनावों का सामना करने की क्षमता, हमारी क्षमताओं को पहचानना और उत्पादकता से काम करना और दूसरों के साथ स्थायी संबंध बनाना, जैसी कई चीजें इसमें शामिल हैं।
भारत के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के अनुसार, ‘मानसिक बीमारी’ का अर्थ है सोच, मनोदशा, धारणा, अनुकूलन या अनुस्थिति या स्मृति से जुड़ी वास्तविक बीमारी जो निर्णय, व्यवहार और वास्तविकता को पहचानने की क्षमता या जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने की क्षमता को बुरी तरह से हानि पहुंचाती है। शराब और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियां, लेकिन इसमें मानसिक मंदता शामिल नहीं है, जो किसी व्यक्ति के दिमाग को रोक देती है या मस्तिष्क के अधूरे विकास की स्थिति है, जो विशेष रूप से बुद्धि की सूक्ष्मता से अभिलक्षित होती है।
शोधकर्ताओं को इस बारे में अधिक से अधिक सबूत मिल रहे हैं कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य- हम कैसा महसूस करते हैं, कैसा व्यवहार करते हैं, क्या सोचते हैं, हमारा मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कल्याण- हमारे शारीरिक कल्याण और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा है। वैसे तो हम सभी एक सुखी और स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि किसी को भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या हो सकती है। हमारे जीन्स, जीवन की घटनाओं, जीवनशैली, हमारा पर्यावरण और परिस्थितियां- इन सभी का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
जब बात मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के कारणों की आती है तो अल्जाइमर्स रोग जैसे कुछ विकार शरीर विज्ञान या जीवतत्व (मस्तिष्क में ताओ और एमिलॉयड प्रोटीन का निर्माण) में गहरे तक पाए जाते हैं जबकि अन्य विकारों की उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक या सामाजिक कारणों (उदाहरण, सामाजिक चिंता) से जुड़ी होती है। हालांकि अब वैज्ञानिक यह पता लगा रहे हैं कि शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारण एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं।
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सिर्फ पीड़ित व्यक्ति से ही नहीं बल्कि समाज से भी लागत निकालने का काम करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की मानें तो, “मानसिक, तंत्रिका संबंधी और मादक द्रव्यों के उपयोग के कारण होने वाली बीमारियां वैश्विक बोझ का 10% और गैर-घातक बीमारियों के भार का 30% हैं।“ इसके अतिरिक्त, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वैश्विक उत्पादकता को होने वाला नुकसान हर साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर होता है।
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में जो वर्जना है वह पीड़ित व्यक्ति को उचित मदद लेने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कई कारणों से नैतिक वर्गीकरण से अलग करना महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य की कोई बीमारी हो जाती है तो उसके लिए उस व्यक्ति को दोषी ठहराना उतना ही गलत है जितना कि किसी को बीमार होने के लिए जिम्मेदार ठहराना। उदाहरण के लिए, अनुसंधान से पता चलता है कि शराब की लत और नशे की लत भी बीमारी है-कुछ लोगों को बेहद कम मात्रा का सेवन करने के बावजूद लत लगने का खतरा होता है क्योंकि इस लत पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का तर्क है कि मादक पदार्थों की लत को एक नैतिक असफलता के रूप में देखना अनुचित है।
हम सभी अपनी मानसिक स्वास्थ्य की अधिक देखभाल कर सकते हैं- यदि हम मानसिक स्वास्थ्य को उसी तरह से प्राथमिकता दें जिस तरह से हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का तभी संज्ञान लें जब वे उत्पन्न होती हैं। अब यह थोड़ा आसान इसलिए भी हो गया है कि क्योंकि हर बीतते दिन के साथ वैज्ञानिक कुछ नई चीजों की खोज कर रहे हैं, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, मस्तिष्क रसायन विज्ञान (डोपामाइन, एसटिलकोलाइन, गाबा, ग्लूटामेट, सेरोटोनिन, ऑक्सिटोसिन, एंडोर्फिन और नोरेपाइनफ्राइन) और भय, प्रेम और सामाजिक जुड़ाव जैसी हमारी मौलिक प्रवृत्ति के बारे में।
यह आर्टिकल मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत शुरू करने का प्रयास है जिसमें मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के लिए जोखिम कारक क्या हैं, भारत और दुनिया में सबसे सामान्य मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियां कौन-कौन सी हैं और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ जरूरी सुझाव दिए गए हैं।
मानसिक स्वास्थ्य स्थिति से जुड़े जोखिम कारक
आघात या किसी तरह की चोट से लेकर आनुवांशिक प्रवृत्ति तक, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से जुड़े दर्जनों जोखिम कारक मौजूद हैं। वास्तव में, शोधकर्ता गहराई से यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि जीवन की कौन सी घटनाएं (जैसे परिवार के सदस्य की मृत्यु और वित्तीय कठिनाइयां) मनोवैज्ञानिक और मानसिक समस्याओं को कैसे ट्रिगर कर सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के लिए निम्नलिखित वैश्विक जोखिम कारक हैं:
- परिवार से संबंधित कारक : इसमें शामिल है
चिंता या अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के लिए किसी भी मानसिक बीमारी या आनुवंशिक प्रवृत्ति का पारिवारिक इतिहास। अनुसंधान से पता चलता है कि बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में इस बात की आशंका 60 से 80 प्रतिशत तक है कि उन्हें यह बीमारी परिवार के सदस्य से विरासत में मिली हो।
पारिवारिक कलह या परिवार के सदस्यों के साथ खराब रिश्ते
घरेलू कलह भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गड़बड़ियों का एक प्रमुख कारण है। शोध से पता चलता है कि जिन लोगों को घरेलू दुर्व्यवहार या कलह का सामना करना पड़ता है, उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) विकसित हो जाता है। (और पढ़ें- हो जाएं सावधान, स्ट्रेस और दुख से भी टूट सकता है दिल)
- वातावरण से जुड़े कारक : इसमें वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण जैसे कारक शामिल हो सकते हैं, लेकिन गर्भ में आपके द्वारा एक्सपोज की गई चीजें भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, दवाइयां या शराब का सेवन। वैज्ञानिकों ने तापमान में वृद्धि और मानसिक अस्पताल में जाने के बीच संबंध भी पाया है।
- वित्तीय कारक : शोध में पाया गया है कि जिन लोगों को पैसे की समस्या नहीं है, उनकी तुलना में वैसे परिवारों और वित्तीय समस्याओं वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की अधिक संभावना होती है।
- जीवनशैली से जुड़े कारक : इनमें बहुत कम या कोई व्यायाम शामिल नहीं हो सकता है, बहुत सारे प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से भरपूर खराब डाइट, धूम्रपान, तनावपूर्ण नौकरी, अपने और प्रियजनों के लिए समय न निकालना या आपके द्वारा चुने गए वैसे विकल्प जो समुदाय और दोस्तों से आपको अलग करते हैं, अकेलापन और सामाजिक अलगाव पैदा करते हैं। रीक्रिएशनल ड्रग्स, शराब और अन्य उत्तेजक भी अस्थायी रूप से मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।
- सेहत से जुड़े कारक : किसी तरह की गंभीर (टर्मिनल) बीमारी, डायबिटीज जैसी पुरानी बीमारी, दुर्घटना या मस्तिष्क में लगी कोई चोट मनःस्थिति को प्रभावित कर सकती है। इनके अलावा, स्वास्थ्य की स्थिति का इलाज करने के लिए उपयोग की जाने वाली कुछ दवाएं मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती हैं। बेशक, मानसिक बीमारी होना -विशेषकर बिना डायग्नोज की हुई या जिसका इलाज न हुआ हो- मानसिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव डालता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, लोगों ने नई बीमारी के बारे में चिंतित महसूस करने की सूचना दी- यह कोविड-19 के न्यूरोलॉजिकल लक्षणों जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, कम सतर्कता और भ्रम की स्थिति से काफी अलग है।
डायबिटीज से बचने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट का उपयोग करे।और अपने जीवन को स्वस्थ बनाये।
- जीवन की अहम घटनाएं : परिवार में किसी तरह का अलगाव या किसी सदस्य की मृत्यु, नौकरी छूटना, दुर्घटना का शिकार होना, ब्रेकअप, गर्भावस्था या रजोनिवृत्ति जैसे जीवन चरणों के रूप में भी घटनाओं का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
- अन्य कारक : युद्ध, संघर्ष, माइग्रेशन, शारीरिक या यौन शोषण, अपनी या प्रियजनों की सुरक्षा का भय होना, डराना-धमकाना (बुलिंग) और लगातार सतर्कता की स्थिति में रहना जैसा कि वैश्विक महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है।
आपके लिंग या जेंडर का भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है। अनुसंधान से पता चलता है कि वित्तीय कठिनाइयों का पुरुषों के स्वास्थ्य की
अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि आपकी उम्र भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कारकों में योगदान दे सकती है: कम उम्र में उपेक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की गड़बड़ी का व्यक्ति पर वयस्कों की तुलना में अधिक प्रभाव पड़ता है। आयु के विस्तार के दूसरे छोर पर, अल्जाइमर्स जैसी डीजेनेरेटिव मानसिक बीमारियां बच्चों के बजाय वरिष्ठ नागरिकों को अधिक प्रभावित करती हैं। तो वहीं, अकेलापन जैसे मानसिक सेहत के कुछ कारक ऐसे भी हैं जो युवाओं और बुजुर्गों को एक समान रूप से प्रभावित करते हैं।
जोखिम कारकों पर राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण विशेष रूप से भारत में 2016 में, NIMHANS ने भारत के पहले राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) के निष्कर्षों को प्रकाशित किया। सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के सबसे बड़े जोखिम कारक हैं:
सामान्य जोखिम : मौजूदा समय में भारत की 10.6% आबादी में मानसिक अस्वस्थता (या मानसिक स्वास्थ्य के कारण होने वाली समस्याएं) के कुछ रूप मौजूद हैं और सर्वे में शामिल 13.7% प्रतिभागियों ने अपने जीवन में किसी न किसी समय मानसिक अस्वस्थता का अनुभव करने की बात कही
लिंग(जेंडर) : भारत में पुरुषों में महिलाओं की तुलना में मानसिक अस्वस्थता का प्रसार अधिक है, सर्वेक्षण के समय भी (पुरुषों के लिए 13.9% और महिलाओं के लिए 7.5%) और जीवन के किसी न किसी समय भी (पुरुषों के लिए 16.7% और महिलाओं में 10.8%)।
उम्र : 40 से 49 साल के बीच के लोगों को मानसिक अस्वस्थता होने का खतरा सबसे अधिक है। (14.5%)
रहने की जगह : शहरी महानगरों में रहने वाले लोगों में मौजूदा समय में मानसिक अस्वस्थता अधिक है(14.7%), उन लोगों की तुलना में जो गैर-मेट्रो शहरों और कस्बों में रहते हैं (9.73%) और भारत के गांवों में रहते हैं (9.57%)
शिक्षा का स्तर : शिक्षा की भी इसमें अहम भूमिका है: सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आयी कि जिन लोगों को स्कूल में प्राथमिक शिक्षा हासिल हुई उन लोगों में मानसिक अस्वस्थता की दर अधिक थी उन लोगों की तुलना में जिन्हें कोई स्कूली शिक्षा नहीं मिली। हालांकि, मानसिक रुग्णता दर में कमी देखने को मिली जैसे-जैसे व्यक्ति की “शिक्षा की स्थिति” या योग्यता में वृद्धि होती गई। हाई स्कूल डिप्लोमा वाले लोगों में बिना किसी शिक्षा वाले लोगों की तुलना में मानसिक रुग्णता का प्रचलन कम था- और उच्च शिक्षा वाले लोग मैट्रिक प्रमाणपत्र वाले लोगों की तुलना में बेहतर थे।
सामाजिक आर्थिक स्थिति : मजदूर वर्ग के लोगों में उच्च आय वर्ग के लोगों की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अधिक प्रचलन था।
वैवाहिक/रिलेशनशिप की स्थिति : जो लोगों के पति या पत्नी की मौत हो चुकी है या जो अपने पति या पत्नी से अलग हैं, उन लोगों में शादीशुदा लोगों की तुलना में मानसिक रुग्णता दर अधिक थी (11.16% वर्तमान और 14.38% जीवनकाल) और उन लोगों की तुलना में भी जिन्होंने कभी शादी नहीं की थी (क्रमशः 7.66% और 9.5%)।
जैसा कि इस सूची से देखा जा सकता है, खराब मानसिक स्वास्थ्य के कुछ जोखिम कारक हमारे नियंत्रण में होते हैं लेकिन बाकी नहीं। कुछ अस्थायी होते हैं, जबकि अन्य हमारी सेहत पर लंबे समय तक बुरा असर डालते हैं। महत्वपूर्ण बात यह याद रखना है कि मदद मांगना मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम है।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के संकेत
जीवन की कुछ स्थितियों में छोटी अवधि या कम समय के लिए परेशान होना स्वाभाविक है। हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ी के कुछ सामान्य संकेतों पर नजर रखना बेहद महत्वपूर्ण है। इनमें ये चीजें शामिल हैं लेकिन ये किसी विशेष क्रम में नहीं हैं:
- हर वक्त बेचैनी या चिंता महसूस करना
- आशाहीन या अयोग्य महसूस करना
- व्यवहार में एक उल्लेखनीय परिवर्तन
- हर वक्त मन में नकारात्मक विचार आना
- स्वयं को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचना (खुद को नुकसान पहुंचाना) या दूसरों को
- आत्महत्या के बारे में सोचना
- सोने में कठिनाई महसूस होना या बहुत अधिक सोना
- भूख कम लगना या सामान्य से अधिक खाना
- मित्रों, पारिवारिक, सामाजिक समारोहों से बचना
- उन गतिविधियों में कम या कोई खुशी न मिलना जिसे पहले आप बहुत इंजॉय करते थे
- शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होना
- कामेच्छा या सेक्स ड्राइव में कमी
- भ्रम की स्थिति
- गलतफहमी, मतिभ्रम या आवाजें सुनाई देना
- शराब, निकोटीन या ड्रग्स जैसे किसी के मूड को बदलने वाले पदार्थों पर निर्भर रहना
- रोजमर्रा के कामों को करने में कठिनाई महसूस होना जैसे काम के लिए तैयार होना या खुद की देखभाल करना
सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
कुछ मायनों में देखा जाए तो हमारा मस्तिष्क ही चिकित्सा क्षेत्र की अंतिम सीमा है। वैज्ञानिक अब भी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और शरीर के भीतर मौजूद जटिल रासायनिक इंटरैक्शन का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जो शरीर को नियंत्रित करतें है, हम कैसा महसूस करते हैं, सोचते हैं, व्यवहार करते हैं। ऐसी दर्जनों स्थितियां हैं जो मस्तिष्क और हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (NMHS 2016 के लेटेस्ट उपलब्ध डेटा) के अनुसार, सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं निम्नलिखित हैं:
पदार्थ उपयोग विकार (सब्स्टेंस यूज डिसऑर्डर एसयूडी) : शराब, ओपिऑयड्स, भांग, दर्दनिवारक दवाइयां और निद्राजनक या मंत्रमुग्ध करने वाली दवाइयां, कोकीन और अन्य उत्तेजक जैसे- मतिभ्रम करने वाले, वाष्पशील विलायक द्रव और तम्बाकू- ये सभी मनोवैज्ञानिक रूप से सक्रिय पदार्थ हैं जो मस्तिष्क और शरीर की कई प्रणालियों को एक साथ प्रभावित कर सकते हैं- साथ ही, वे आदत बनाने वाले या नशे की लत वाले भी हो सकते हैं।
NMHS 2016 के अनुसार, भारत में हर 5 में से 1 व्यक्ति इनमें से कम से कम एक पदार्थ का उपयोग करता है। तंबाकू के उपयोग की व्यापकता तो करीब 21% है, अल्कोहल की 4.6% और ड्रग्स की 0.6%।
अनुसंधान से पता चलता है कि सिगरेट रसायन जैसे पदार्थ “मस्तिष्क परिवर्तन” का कारण बनते हैं और उन लोगों के लिए और बदतर हो सकते हैं, जिन्हें पहले से ही मनोरोग की कोई बीमारी है जैसे- एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऑर्डर) या अल्जाइमर्स। (और पढ़ें- बच्चों में एडीएचडी)
स्किजोफ्रेनिया और दूसरे मनोरोग : कई मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में मनोविकृति या पागलपन हो सकता है जैसे- स्किजोफ्रेनिया, स्किज़ोअफेक्टिव डिसऑर्डर, कैटाटोनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर। साइकोऐक्टिव पदार्थों के उपयोग से भी कभी-कभी मनोविकृति भी हो सकती है। स्किजोफ्रेनिया एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो रोगी की वास्तविकता की भावना को विकृत करती है- यह भ्रम (भ्रम संबंधी विकार), मतिभ्रम और दिन-प्रतिदिन के आधार पर सामान्य रूप से कार्य करने में कठिनाई से जुड़ा हो सकता है।
NMHS 2016 के अनुसार, सर्वेक्षण करने के समय देश में स्किज़ोफ्रेनिया और अन्य मानसिक विकारों की व्यापकता 0.5% थी और सर्वे में शामिल 1.4% प्रतिभागियों ने कहा कि उनके जीवन में किसी न किसी समय मानसिक विकार था। WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर करीब 2 करोड़ लोग स्किजोफ्रेनिया के साथ जी रहे हैं।
मूड डिसऑर्डर : डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी), प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी) और ड्रग से प्रेरित या बीमारी से संबंधित डिप्रेशन- ये सभी मूड डिसऑर्डर के उदाहरण हैं। NMHS 2016 के अनुसार, सर्वेक्षण करने के समय मूड से जुड़े इन विकारों का प्रचलन 2.84% था और प्रतिभागियों के जीवन में किसी न किसी बिंदु पर इसकी मौजूदगी 5.61% थी। WHO के अनुसार, विश्व स्तर पर करीब 26.4 करोड़ लोग अवसाद के साथ जी रहे हैं।
तंत्रिका रोग और तनाव-संबंधी विकार : पागलपन या मानसिक रूप से विक्षिप्त होने में सनक और चिंता से जुड़ी बीमारियां जैसे- ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर और फोबिया शामिल है जबकि तनाव से संबंधित विकारों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और एक्यूट स्ट्रेस डिसऑर्डर शामिल है (जो 3 दिनों से लेकर 1 महीने तक जारी रह सकता है)।
आत्महत्या का खतरा : खुद को नुकसान पहुंचाना और आत्महत्या, नकारात्मक विचारों और कम मानसिक स्वास्थ्य के चरम नतीजे हैं। NMHS 2016 के अनुसार, भारत में प्रति 1 लाख की आबादी पर 10.6 आत्महत्याओं का प्रचलन है जो 30 से 44 साल के लोगों के बीच सबसे ज्यादा देखने को मिलता है (17.24 प्रति 1 लाख)। इसके बाद 18 से 29 के बीच के लोगों का नंबर आता है जिनमें 17.15 आत्महत्याएं प्रति 1 लाख। भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की दर अधिक है। वैश्विक स्तर पर देखें तो हर साल कुल मौतों में से 1.4% मौतें आत्महत्या के कारण होती हैं। अनुसंधान से पता चलता है कि बचपन के प्रतिकूल अनुभव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आत्महत्या के उच्च जोखिम से जुड़ी होती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य का इलाज और जरूरी टिप्स
भारत में मानसिक बीमारी से लड़ने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम मौजूद है। चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवर व्यक्ति और हेल्पलाइन तक पहुंचने के अलावा, आपके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कई रास्ते उपलब्ध हैं। इस क्रम में आपकी मदद करने के लिए क्या आइडिया मौजूद हैं:
साइकोथेरेपी : संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी, टॉक थेरेपी, शोक परामर्श थेरेपी जैसी कई मनोचिकित्सा थेरेपी हैं जो कुछ लोगों को इस बात की जड़ तक पहुंचने में मदद कर सकती हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं और अपनी भावनाओं का सामना करने के लिए उन्हें जरूरी रणनीतियों से लैस कर सकती हैं।
ड्रग थेरेपी : मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एंटीडिप्रेसेंट्स और एंटीसाइकोटिक्स जैसी दवाएं प्रिस्क्राइब की जाती हैं।
जीवनशैली में बदलाव : हम जो खाते हैं उस भोजन के संदर्भ में स्वस्थ विकल्प चुनना, हम कितना व्यायाम करते हैं, हम लोगों से कितना मिलते-जुलते हैं, सामाजिकरण करते हैं और क्या हम जानबूझकर सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने का प्रयास करते हैं- इन सभी का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। अनुसंधान से पता चलता है कि केवल मुस्कुराने से लोगों के मूड में सुधार हो सकता है जबकि मुंह बनाकर रखने या शिकायत करते रहने से मूड और खराब होता है।
आराम : ऊपर बताई गई चीजों के अलावा ध्यान, योग, ताई ची और गहरी सांस लेने का व्यायाम आपको आराम दिलाने और अच्छा महसूस करने में आपकी मदद कर सकता है।
जैसा कि आप जानते हैं, मानसिक स्वास्थ्य का मतलब केवल मानसिक बीमारी की अनुपस्थिति नहीं है। यह मानसिक कल्याण के बारे में 360 डिग्री यानी संपूर्ण दृष्टिकोण समझने के बारे में है। इस कारण से, ऐसी चीजें करना जो आपको आराम देती हों (जैसे- छुट्टियों पर जाना या फिल्म देखने जाना), आपको फिट रखती हों (मुख्य रूप से व्यायाम और आहार लेकिन डॉक्टर द्वारा नियमित जांच भी) और आपको खुश रखती हों यहां पर महत्वपूर्ण है। विटामिन डी की कमी जैसी बेहद छोटी चीज भी आपकी समस्या को बढ़ा सकती है। इसलिए अपनी देखभाल और खुशी पर ध्यान देना जरूरी है।
आखिर में हमारी खुद की धारणाओं और हमारे जीवन और पारस्परिक संबंधों पर सोशल मीडिया का क्या व्यापक प्रभाव पड़ता है, इस पर विचार किए बिना आज मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना असंभव है। फियर ऑफ मिसिंग आउट (FOMO) यानी चीजों को मिस कर देने का डर, सामाजिक चिंता, जानकारी की महामारी (infodemic) और शारीरिक छवि से जुड़े मुद्दे- सभी इस सोशल मीडिया के माध्यम से गहराई से जुड़े हैं। जैसा की बाकी चीजों के साथ होता है, अगर आप ऑनलाइन अपने जीवन के किसी भी पहलू से व्यथित महसूस कर रहे हों तो मदद मांगने के लिए अपना हाथ आगे जरूर बढ़ाएं।
आखिर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी ये बातें याद रखें
विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के अनुसार “मानसिक स्वास्थ्य: हमारी प्रतिक्रिया को मजबूत करना” तथ्य पत्रक, “कई सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और जैविक कारक किसी भी समय किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के स्तर को निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए, हिंसा और लगातार सामाजिक-आर्थिक दबाव मानसिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम के रूप में पहचाने जाते हैं। इसके सबसे स्पष्ट सबूत यौन हिंसा से जुड़े हैं।“ WHO के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी के अन्य जोखिम कारक हैं:
- तेजी से हो रहे सामाजिक परिवर्तनों के साथ अपनी स्पीड को बनाए रखने में असमर्थता महसूस होना
- काम की स्थिति खराब या तनावपूर्ण। इसमें काम करने की जगह पर बुलिंग, क्रूर प्रतिस्पर्धा और दबाव या काम और जीवन के बीच अस्थिर समीकरण शामिल हो सकते हैं।
- लिंग भेदभाव : इसमें गैर-विषमलिंगीय यौन वरीयताओं, थर्ड जेंडर, गैर-सीसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के खिलाफ भेदभाव शामिल हो सकता है
- सामाजिक बहिष्करण : सामाजिक बहिष्कार के कई रूप हैं, स्कूल में लोकप्रिय बच्चों के समूह से बहिष्करण से शुरू होकर जाति या धर्म के आधार पर बहिष्कार
- अस्वस्थ जीवनशैली
- शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं
- मानव अधिकारों का उल्लंघन
- मनोवैज्ञानिक और व्यक्तित्व कारक
- जैविक जोखिमों में जीन्स भी शामिल है
वैसे तो कई अलग-अलग प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ियां और विकार हैं और प्रत्येक के अपने संकेत और लक्षण भी होते हैं, बावजूद इसके कुछ खतरे ऐसे भी हैं जिन्हें हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इनमें निराशा, नींद की गड़बड़ी, भूख में अचानक बदलाव, खुद को नुकसान पहुंचाना या आत्महत्या के विचार शामिल हैं।
मानसिक स्वास्थ्य का मतलब केवल मानसिक बीमारी का अभाव नहीं है, इसमें मानसिक कल्याण भी शामिल है। भारत के पास मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम मौजूद है। इसके अलावा, लोगों को अपने मुद्दों से निपटने में मदद करने के लिए मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और परामर्शदाताओं के मामले में भारत में बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञता बढ़ रही है।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के संकेतों पर नजर रखना बेहद जरूरी है- खुद में भी और अपने प्रियजनों में भी (जिसमें बच्चे भी शामिल हैं)- और अगर मदद की जरूरत हो तो किसी पेशेवर के पास जाएं या स्वंय सहायता निर्देश से जुड़े कदम उठाएं। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ना भी बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि हम सभी अपने मानसिक स्वास्थ्य का बेहतर ख्याल रख सकें।