बिहार में फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति का मामला गंभीर रूप से सामने आया है, जिसके चलते राज्य के शिक्षा विभाग ने व्यापक जांच शुरू की है। राज्य के 1 लाख 87 हजार 818 नियोजित शिक्षकों में से 96 शिक्षकों के प्रमाणपत्र प्रथम दृष्ट्या फर्जी पाए गए हैं, जबकि 23 हजार 801 शिक्षकों के एक या अधिक प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए हैं। इस स्थिति को देखते हुए शिक्षा विभाग ने इन प्रमाणपत्रों की गहन जांच का आदेश दिया है और दोषी पाए जाने वाले शिक्षकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही, उन शिक्षकों को दोबारा काउंसलिंग का मौका मिलेगा, जो किसी कारणवश पिछली काउंसलिंग में शामिल नहीं हो सके थे।
यह रिपोर्ट इस पूरी प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालती है। इसमें शिक्षा विभाग द्वारा उठाए गए कदम, फर्जीवाड़े के खिलाफ कार्रवाई, शिक्षकों की दोबारा काउंसलिंग और प्रमाणपत्र सत्यापन के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
फर्जी प्रमाणपत्रों की जांच की प्रक्रिया
शिक्षा विभाग की जांच में अब तक यह सामने आया है कि 96 शिक्षकों के प्रमाणपत्र प्रारंभिक जांच में फर्जी पाए गए हैं। ये वे शिक्षक हैं, जो राज्य सरकार द्वारा आयोजित सक्षमता परीक्षा को पास करके नियुक्त किए गए थे। इन शिक्षकों के दस्तावेज़ों की अब और गहराई से जांच की जा रही है। राज्य मुख्यालय स्तर पर गठित समिति इन प्रमाणपत्रों की सत्यता की गहनता से जांच करेगी। अगर इन प्रमाणपत्रों को फर्जी पाया जाता है, तो संबंधित शिक्षकों के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी, जिसमें उनकी नियुक्ति को रद्द करना और कानूनी कार्रवाई भी शामिल हो सकती है।
इसके अलावा, 23 हजार 801 शिक्षकों के एक या एक से अधिक प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए हैं। इन संदिग्ध प्रमाणपत्रों की भी गहन जांच की जाएगी और सत्यापन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा एक सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है, जिसमें इन शिक्षकों को अपने सही प्रमाणपत्र अपलोड करने का मौका दिया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि शिक्षकों द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की सही तरीके से जांच की जा सके और किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो।
शिक्षकों की काउंसलिंग प्रक्रिया
बिहार में 1 लाख 87 हजार 818 नियोजित शिक्षकों की काउंसलिंग 1 अगस्त से 13 सितंबर 2024 तक आयोजित की गई थी। इस काउंसलिंग का उद्देश्य शिक्षकों की सक्षमता परीक्षा के आधार पर उनके प्रमाणपत्रों की जांच करना था। इस प्रक्रिया में 1 लाख 84 हजार 452 शिक्षक उपस्थित हुए, जबकि 3 हजार 366 शिक्षक अनुपस्थित रहे। जो शिक्षक उपस्थित हुए, उनमें से 1 लाख 73 हजार 527 शिक्षकों की ही काउंसलिंग पूरी हो सकी।
काउंसलिंग प्रक्रिया में कई शिक्षकों के दस्तावेज सत्यापित नहीं हो पाए, जिसके पीछे कई तकनीकी कारण थे। उदाहरण के लिए, 10 हजार 219 शिक्षकों का बायोमेट्रिक सत्यापित हो गया, लेकिन उनका आधार सत्यापन नहीं हो पाया। वहीं, 32 शिक्षकों का आधार सत्यापित हुआ, लेकिन उनका बायोमेट्रिक सत्यापन नहीं हो सका। 311 शिक्षक ऐसे थे, जिनका बायोमेट्रिक और आधार दोनों सत्यापित हो गए, लेकिन उनके मोबाइल पर ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) नहीं पहुंच सका, जिसके कारण उनका सत्यापन पूरा नहीं हो सका। इसके अलावा, 124 शिक्षक ऐसे थे जिनके बायोमेट्रिक और आधार सत्यापित थे, लेकिन उनके प्रमाणपत्रों का सत्यापन लंबित था।
फिर से मिलेगी काउंसलिंग का मौका
जो शिक्षक किसी कारणवश काउंसलिंग में अनुपस्थित रहे या जिनकी काउंसलिंग किसी तकनीकी समस्या के कारण पूरी नहीं हो पाई, उन्हें एक और मौका दिया जाएगा। अनुपस्थित 3 हजार 366 शिक्षकों को पुनः काउंसलिंग के लिए बुलाया जाएगा। इसके अलावा, जिन 124 शिक्षकों का बायोमेट्रिक और आधार सत्यापित हो गया था, लेकिन उनके प्रमाणपत्रों का सत्यापन लंबित था, उन्हें भी फिर से काउंसलिंग का अवसर दिया जाएगा।
वहीं, 311 ऐसे शिक्षक, जिनका बायोमेट्रिक और आधार सत्यापित हो चुका था, लेकिन मोबाइल पर ओटीपी न आने के कारण सत्यापन नहीं हो सका, उन्हें भी दोबारा मौका मिलेगा। इस प्रकार, शिक्षा विभाग यह सुनिश्चित कर रहा है कि सभी शिक्षकों को निष्पक्ष रूप से काउंसलिंग में भाग लेने का अवसर मिले, ताकि कोई भी शिक्षक बिना उचित प्रक्रिया के बाहर न हो।
फर्जी प्रमाणपत्र वाले शिक्षकों पर कार्रवाई
जिन शिक्षकों के प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार इस बात पर गंभीरता से ध्यान दे रही है कि फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर कोई भी शिक्षक शिक्षण कार्य न कर सके। फर्जी दस्तावेजों का उपयोग कर सरकारी नौकरी हासिल करना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है। ऐसे में, दोषी पाए जाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द किया जाएगा और उन पर आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
इसके अलावा, जिन शिक्षकों के प्रमाणपत्र संदिग्ध हैं, उनकी जांच की प्रक्रिया भी पूरी की जाएगी। अगर जांच में उनके प्रमाणपत्र सही पाए जाते हैं, तो उन्हें शिक्षा विभाग की ओर से क्लीयरेंस मिलेगी, लेकिन अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो उनके खिलाफ भी उचित कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षा विभाग की सख्ती
शिक्षा विभाग की यह कार्रवाई यह दिखाती है कि राज्य सरकार शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और पारदर्शिता को लेकर गंभीर है। विभाग यह सुनिश्चित करना चाहता है कि राज्य में केवल योग्य और सच्चे शिक्षकों को ही शिक्षण का अवसर मिले। यह कदम शिक्षा के स्तर को सुधारने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है और इससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी।
शिक्षा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्रमाणपत्रों की जांच प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी होगी, ताकि किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय न हो। इसके लिए विभाग ने एक सॉफ़्टवेयर आधारित प्रक्रिया अपनाई है, जो सत्यापन को सरल और प्रभावी बनाएगी।
काउंसलिंग की नई तिथियां जल्द घोषित होंगी
जो शिक्षक काउंसलिंग में अनुपस्थित रहे, उन्हें पुनः काउंसलिंग के लिए बुलाया जाएगा। इसके लिए नई तिथियां जल्द ही घोषित की जाएंगी। विभाग यह सुनिश्चित कर रहा है कि सभी शिक्षकों को एक समान अवसर मिले और तकनीकी कारणों से कोई भी शिक्षक काउंसलिंग से वंचित न रहे।
इसके अलावा, जो शिक्षक बायोमेट्रिक और आधार सत्यापित नहीं करवा सके थे, उन्हें भी इस प्रक्रिया में फिर से भाग लेने का मौका मिलेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की पूरी तरह से जांच हो और किसी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना न रहे।
निष्कर्ष
बिहार में शिक्षकों की प्रमाणपत्र जांच और काउंसलिंग की यह प्रक्रिया राज्य की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। फर्जी प्रमाणपत्रों का उपयोग करने वाले शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी, ताकि राज्य के छात्रों को योग्य और सक्षम शिक्षक मिल सकें। इस प्रक्रिया से शिक्षा विभाग की सख्ती और पारदर्शिता की नीति का भी प्रमाण मिलता है, जो राज्य की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में सहायक सिद्ध होगा।
इस कार्रवाई से एक ओर जहां शिक्षकों के फर्जीवाड़े पर रोक लगेगी, वहीं दूसरी ओर राज्य के छात्रों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इससे शिक्षा प्रणाली में सुधार होगा और बिहार में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठेगा।