भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार में राजनीतिक यात्रा का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। भाजपा का उदय, संघर्ष, गठबंधन की राजनीति और हाल के वर्षों में इसकी स्थिति को समझने के लिए इसके इतिहास पर एक विस्तृत दृष्टि डालना आवश्यक है। इस रिपोर्ट में हम बिहार में भाजपा की स्थापना से लेकर आज तक की घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भाजपा का प्रारंभिक दौर (1980-1990)
1970 के दशक के अंत में, जब भारत राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था, जनसंघ, जो भारतीय जनता पार्टी का पूर्ववर्ती संगठन था, ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल (1975-1977) के दौरान, जनसंघ ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया। 1980 में जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी के रूप में पुनर्गठित किया गया। भाजपा का मुख्य आदर्श हिंदुत्व की राजनीति और राष्ट्रवाद था, जो कि उस समय की मुख्यधारा की राजनीति से थोड़ा अलग था।
बिहार में भाजपा की प्रारंभिक स्थिति
1980 के दशक में बिहार की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन धीरे-धीरे जनता दल और अन्य क्षेत्रीय दलों ने अपनी जगह बनानी शुरू की। इस दौर में भाजपा बिहार में एक छोटे दल के रूप में सक्रिय थी, और इसकी राजनीतिक ताकत सीमित थी। इसके बावजूद, भाजपा ने धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी मध्यम वर्ग के बीच अपना आधार बनाना शुरू किया।
1990 का दशक: गठबंधन की राजनीति और भाजपा की भूमिका
1990 का दशक बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया। 1990 में लालू प्रसाद यादव ने बिहार की सत्ता संभाली, जो जनता दल (बाद में राष्ट्रीय जनता दल) के नेता थे। उनके नेतृत्व में बिहार में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया, जिसने पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया। इस दौर में भाजपा ने खुद को उच्च जातियों और शहरी मध्यम वर्ग की पार्टी के रूप में पेश किया, जबकि लालू प्रसाद यादव का समर्थन पिछड़ी जातियों और मुस्लिमों में था।
भाजपा ने इस समय अपनी राजनीतिक रणनीति को संशोधित किया और गठबंधन की राजनीति का सहारा लिया। 1990 के दशक के मध्य में भाजपा ने समता पार्टी (जो बाद में जनता दल (यूनाइटेड) में विलीन हो गई) के साथ गठबंधन किया। इस गठबंधन ने बिहार की राजनीति में भाजपा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। हालाँकि भाजपा अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकती थी, लेकिन गठबंधन की राजनीति ने इसे सत्ता का हिस्सा बनने का मौका दिया।
2000 का दशक: एनडीए सरकार और भाजपा का उदय
2000 का दशक बिहार में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण था। 2005 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) ने मिलकर चुनाव लड़ा और सफलतापूर्वक बिहार में सत्ता हासिल की। नीतीश कुमार, जो जनता दल (यूनाइटेड) के नेता थे, बिहार के मुख्यमंत्री बने, जबकि भाजपा गठबंधन की प्रमुख सहयोगी पार्टी बनी। इस गठबंधन ने बिहार में विकास और सुशासन की नई परिभाषा गढ़ी।
नीतीश कुमार और भाजपा की इस जोड़ी ने बिहार को नई दिशा दी। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में राजद की सरकार के दौरान बिहार को “जंगलराज” का नाम दिया गया था, जिसे खत्म करने में इस गठबंधन ने अहम भूमिका निभाई। भाजपा ने विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति को प्राथमिकता दी, जबकि नीतीश कुमार ने सुशासन और कानून व्यवस्था को प्राथमिक मुद्दा बनाया।
2010-2015: नीतीश-भाजपा गठबंधन का टूटना और पुनर्गठन
2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा और जदयू का गठबंधन फिर से विजयी हुआ, लेकिन इसके तुरंत बाद, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का उदय होने के बाद नीतीश कुमार और भाजपा के बीच मतभेद उभरने लगे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने पर नीतीश कुमार ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ दिया और 2013 में भाजपा से अलग हो गए।
2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव की राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा। इस गठबंधन ने भाजपा को चुनावों में पराजित किया, और नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। इस दौरान भाजपा विपक्ष में रही और इसने बिहार की राजनीति में अपने जनाधार को मजबूत किया।
2017-2020: नीतीश का भाजपा में वापसी और गठबंधन की राजनीति
2017 में बिहार की राजनीति में एक और बड़ा बदलाव आया, जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर फिर से भाजपा के साथ गठबंधन किया। यह कदम बिहार की राजनीति में एक बड़ा झटका था, क्योंकि इससे पहले नीतीश कुमार और भाजपा के बीच मतभेद सार्वजनिक हो चुके थे। लेकिन इस बार दोनों दलों ने मिलकर सरकार बनाई, और नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने।
2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार में बड़ी जीत हासिल की। यह गठबंधन न केवल राजनीतिक रूप से सफल रहा, बल्कि इसने बिहार में भाजपा के जनाधार को भी और मजबूत किया।
2020 के विधानसभा चुनाव और भाजपा की बढ़ती ताकत
2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और जदयू ने फिर से गठबंधन में चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार चुनावी परिणामों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला। जदयू को अपेक्षाकृत कम सीटें मिलीं, जबकि भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया और बिहार विधानसभा में अपनी स्थिति मजबूत की। हालांकि, गठबंधन के तहत नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने, लेकिन भाजपा की राजनीतिक ताकत में वृद्धि स्पष्ट थी।
भाजपा ने इस दौर में बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया था। भाजपा के नेताओं ने बिहार में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई और पार्टी की जड़ें शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक फैल गईं।
हालिया घटनाक्रम (2021-2024)
2021 के बाद से भाजपा बिहार में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरती रही है। हालाँकि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहे, लेकिन भाजपा ने कई नीतिगत मुद्दों पर अपनी स्पष्ट स्थिति बनाए रखी। बिहार में भाजपा ने हिंदुत्व और विकास के मुद्दों को प्रमुखता दी, और इसका जनाधार निरंतर बढ़ता रहा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चलाने के बावजूद भाजपा ने अपनी स्वतंत्र पहचान और नीतियों पर जोर दिया।
भाजपा की भविष्य की दिशा
बिहार में भाजपा की भविष्य की राजनीति गठबंधन की राजनीति और हिंदुत्व के मुद्दों पर निर्भर करती है। भाजपा के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कैसे अपने जनाधार को और मजबूत कर सकती है और नीतीश कुमार के बाद की राजनीति में अपनी भूमिका को और स्पष्ट कर सकती है।
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा महत्वपूर्ण रहे हैं, और भाजपा के सामने चुनौती यह है कि वह कैसे इन समीकरणों को अपने पक्ष में कर सकती है। इसके अलावा, बिहार में विकास के मुद्दे पर भाजपा का रुख और नीतियां इसे आगामी चुनावों में एक मजबूत पार्टी के रूप में स्थापित कर सकती हैं।
निष्कर्ष
बिहार में भाजपा की राजनीतिक यात्रा संघर्षों, गठबंधनों, और विचारधारात्मक मुद्दों से भरी रही है। प्रारंभ में एक छोटे दल के रूप में शुरू होने के बाद, भाजपा ने बिहार में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में खुद को स्थापित किया है। आज भाजपा बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और आने वाले वर्षों में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है। भाजपा का बिहार में उदय इस बात का प्रमाण है कि हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे भारतीय राजनीति में किस तरह से अपना प्रभाव बना सकते हैं।