Sunday, December 22, 2024
spot_img
HomePolitical PartiesJan Suraaj Partyप्रशांत किशोर का जन सुराज पार्टी के साथ गठबंधन पर मंथन: चुनावी...

प्रशांत किशोर का जन सुराज पार्टी के साथ गठबंधन पर मंथन: चुनावी समीकरणों में आ सकते हैं बड़े बदलाव

बिहार में अफसरों की लॉबी नहीं, यहां हालात उससे भी ज्यादा खराब हैं। पूरी सरकार चार रिटायर्ड अधिकारियों के भरोसे है। जिन्हें नीतीश ने सलाहकार बना रखा है, वो सरकार चला रहे हैं। न किसी विधायक की सुनी जा रही है, न किसी मंत्री की कोई ताकत है। न मुख्यमंत्री खुद इस स्थिति में है कि कोई निर्णय ले पाएं। चार सलाहकार, जिन्हें जनता ने नहीं चुना है। न अब ये अफसर हैं, क्योंकि रिटायर हो चुके हैं, ये अफसर थे। लेकिन नीतीश के कारण सरकार चला रहे हैं। वो जो चाहते हैं, वही सरकार में होता है। 13 करोड़ लोगों का भविष्य चार रिटायर्ड अधिकारों के भरोसे छोड़ दिया गया है, इसलिए ये दुर्गति है।’

ये कहना है जनसुराज पार्टी को शुरू करने वाले प्रशांत किशोर यानी पीके का। जनसुराज को बने एक महीने से ज्यादा हो चुका है और पार्टी तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज में हो रहे उपचुनाव में पहली बार मैदान में है।

सवाल : जनसुराज पहली बार मैदान में है। आपका मुकाबला उन लोगों से है जो सालों या तो सत्ता में रहे हैं, या सत्ता में हैं, इनसे लड़ाई कितनी बड़ी चुनौती है?

जवाब : जनसुराज की लड़ाई उन लोगों से नहीं है, जिन्हें आप सत्ता में बता रहे हैं। बिहार में एक बहुत बड़ा वर्ग उनको पसंद नहीं करता, चाहे वो पक्ष में हो या विपक्ष में हों। वो सिर्फ और सिर्फ मजबूरी में उनको वोट करता है। बिहार में करीब 20 फीसदी मुस्लिम समाज की आबादी है। इनके बार में लोग कहते हैं कि मुस्लिम आरजेडी को वोट देते हैं।

इस बात को आप गहराई से देखेंगे तो पाएंगे कि मुस्लिम समाज आरजेडी, राजद को इसलिए वोट नहीं देता कि उनके लिए कुछ काम किया गया है, उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी दी गई है, या वो भाजपा को हरा रहे हैं। इन्हें वोट देना उसकी मजबूरी है। क्योंकि सामने भाजपा है। भाजपा को तो वोट दे नहीं सकता। तीसरा कोई विकल्प है नहीं, इसलिए मजबूरी में लालटेन को वोट दे देता है।

यही हाल बहुत बड़े वर्ग का है, जो भाजपा–जदयू जिसको एनडीए कहते हैं उसको वोट देता है। वो सब नीतीश और भाजपा को पसंद करने वाले लोग नहीं हैं। वो सिर्फ लालूजी से डरते हैं। लालूजी का जो जंगलराज था, जिन लोगों ने पंद्रह साल लालूजी का जंगलराज देखा, जिसमें अपराधियों का आतंक था, लोग छ बजे के बाद घरों से नहीं निकल सकते थे, उस कालखंड को जिन लोगों ने देखा है, वो चाहते हैं कि भाई चलो व्यवस्था भले ही खराब है, रोजगार नहीं है, पढ़ाई नहीं है, वो सब है, लेकिन कम से कम अपहरण तो नहीं है। कम से कम कोई आकर गोली तो नहीं मार रहा है। तो कई बार लोग विकल्प के अभाव में सब कुछ जानते हुए गलत आदमी को वोट दे रहे हैं। जनसुराज उसी राजनीतिक बंधुआ मजदूरी से आजादी का अभियान है।

सवाल : लालूजी के राज को आप जंगलराज कह रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में आरजेडी का वोट शेयर 22 फीसदी था, सबसे ज्यादा वोट शेयर वाली पार्टी है?

जवाब : लालूजी को 22 फीसदी वोट मिला है तो 18 फीसदी तो यहां का मुसलमान है, जो भाजपा के सामने मुफ्त में उनको वोट दे रहा है, तो 22 परसेंट लाना कौन सी बहुत बड़ी बहादुरी का काम है। लालूजी पिछली बार अपने दम पर बिहार में 1995 में जीते थे। बाकी के समय कांग्रेसियों ने उनको बैसाखी देकर सत्ता में रखा है। यही हाल नीतीश कुमार का है।

नीतीश कुमार अपने जीवन में एक ही बार 2010 में 117 सीटें जीते थे, जो बहुमत के करीब की मेजोरिटी है। अगर आप अभी की स्थिति देखें तो उनके सिर्फ 42 विधायक हैं, लेकिन भाजपा ने उनको सत्ता में बैठा रखा है। पिछले 30–35 साल से लालू–नीतीश का जो राज चल रहा है, जिसके चलते बिहार की ये दुर्दशा है, उसके असली गुनहगार कांग्रेसी और भाजपाई हैं। क्योंकि लालू–नीतीश को जनता ने वोट दिया, लेकिन उनको मेजोरिटी नहीं दी।

बिहार में बीजेपी के 75 विधायक हैं, नीतीश के 42 विधायक हैं, फिर भी भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री बना रखा है। क्योंकि उनको 12–15 सांसदों की जरूरत है दिल्ली में है। बिहार का जो होता हो, उससे उन्हें कोई फर्क नहीं है। इस बाय इलेक्शन में भी जो लोग भाजपा को वोट दे रहे हैं, वो भाजपा को नहीं बल्कि नीतीश कुमार को वोट दे रहे हैं। जैसे कांग्रेस ने अपने आपको लालू के हाथ में बेचा, वैसे ही भाजपा वाले नीतीश के हाथ में बेच रहे हैं।

सवाल : आपने कहा, ‘नीतीश के फेरे में मत फंसो। ये ऐसा जिन्न है जो बोतल से निकल गया तो कभी वापस नहीं जाएगा।’ नीतीश को लेकर इतने गुस्से की वजह क्या है। आप तो पहले इनके साथ ही काम कर रहे थे?

जवाब : मैंने ये नीतीश के बारे में नहीं कहा। मैंने ये कहा कि, नीतीश ने लैंड सर्वे का नया फसाद खड़ा किया है और ये लोगो के लिए इतनी बड़ी परेशान खड़ी करेगा। जमीन सर्वे के नाम पर नीतीश कुमार ने बिना सोचे समझे ऐसी एक योजना शुरू की है, जिसकी वजह से बिहार के हर परिवार में जिसके पास भी जमीन है, कम हो- ज्यादा हो, उसके परिवार में झगड़ा–मनमुटाव होना ही होना है।

जनसुराज भूमि सुधार के पक्ष में है। जहां ये पता चले कि जमीन कितनी है, किसकी है, किसकी होनी चाहिए, वो भूमि सुधार है। नीतीश कुमार का लैंड सर्वे भूमि सुधार नहीं है। सर्वे में ये कहा जा रहा है कि आपके पास जमीन है, अब आप अपनी तीन पीढ़ियों की वंशावली बनाकर बताओ कि ये आप ही की है।

बिहार में जो सामाजिक स्थिति रही है, उसमें बेटियों को कानूनी तौर पर जमीन का हिस्सेदार नहीं बनाया है। शायद ही कोई परिवार होगा जहां बेटियों को हिस्सा मिला है। वंशावली में सबके हस्ताक्षर जरूरी हैं। या तो बेटी हस्ताक्षर करे या अपना दावा छोड़े। इससे हर घर में मनमुटाव, लड़ाई–झगड़ा शुरू हो जाएगा।

नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है अभी की वो इन चीजों को बहुत बेहतर तरीके से समझ सकें। चार रिटायर्ड ऑफिसर ही सरकार चला रहे हैं। लैंड सर्वे भूमि सुधार नहीं है। लोग यहां बाहर से कामकाज छोड़कर, छुटि्टयां लेकर अपने जमीन के कागज निकालने आ रहे हैं।

कागज निकालने के लिए सरकारी दफ्तरों में घूस देनी पड़ रही है। वंशावली बनाने के लिए पूरे परिवार को जुटाना पड़ा है, ये बहुत बड़ा फसाद खड़ा करने वाली बात है। इसलिए जो लोग नीतीश को वोट दे रहे हैं वो ये ध्यान रखें नीतीश की पॉलिसी की वजह से आपकी जमीन का मालिकाना हक खतरे में है।

इस नीति से ज्यादातर लोगों का मालिकाना हक विवादित हो जाएगा। घरों में झगड़ा–लड़ाई होगा। देश में ऐसा कहीं भी नहीं किया गया है।

सवाल : एक वक्त था जब आप नीतीश कुमार के साथ ही काम करते थे, अब उनके लिए इतना गुस्सा क्यों आ गया?

जवाब : एक वक्त नहीं था और नीतीश को लेकर मेरा गुस्सा नहीं है। नीतीश कुमार 2014 में चुनाव नहीं हारे थे, उनकी पार्टी लोकसभा में हारी थी, उनको दो सीट आई थीं। उन्होंने अपना पद छोड़ दिया, मांझी जी को मुख्यमंत्री बनाया। आज 2020 में नीतीश कुमार चुनाव हार गए हैं। 243 के विधानसभा में उनके 42 विधायक हैं, लेकिन उस आदमी में कोई राजनीतिक मोरालिटी नहीं बची है। कभी लालटेन के साथ गए, कभी भाजपा के साथ गए। घर–घर में जिसे लोग पलटूराम कहते हैं। पलट पलट कर कुर्सी पर बैठे।

प्रशासक के तौर पर जिस नीतीश की मैंने मदद की थी, वो तब जब 2005 के बाद 2010 में बिहार में थोड़ा बहुत सुधार होता दिखा था। लोग उनको सुशासन बाबू कहते थे। आज नीतीश का वो दौर है, जिसमें लोग कह रहे हैं पहले बिहार में अपराधियों का जंगलराज देखा था, नीतीश के वक्त में अब अधिकारियों का जंगलराज देख रहे हैं।

सरकार का कोई इकबाल ही नहीं है। अधिकारी खा रहे हैं। लूट रहे हैं। उनकी ही मनमानी चल रही है। आज के नीतीश वो हैं, जो कोरोना में लाखों लोग शहरों से निकाल दिए गए। इतना कष्ट हुआ, ये आदमी एक डेढ़ महीने तक घर से बाहर ही नहीं निकले। शराबबंदी के नाम पर जहरीली शराब से मौत हो रही है, ये देखने तक नहीं जाते।

सवाल : क्या आप यह कह रहे हैं कि चुनिंदा अफसरों की लॉबी ही सरकार चला रही है?

जवाब : अफसरों की लॉबी नहीं, यहां हालात उससे भी ज्यादा खराब हैं। पूरी सरकार चार रिटायर्ड अधिकारियों के भरोसे है। जिन्हें नीतीश ने सलाहकार बना रखा है, वो सरकार चला रहे हैं। न किसी विधायक की सुनी जा रही है, न किसी मंत्री की कोई ताकत है। न मुख्यमंत्री खुद इस स्थिति में है कि कोई निर्णय ले पाएं।

चार सलाहकार, जिन्हें जनता ने नहीं चुना है। न अब ये अफसर हैं, क्योंकि रिटायर हो चुके हैं, ये अफसर थे, लेकिन नीतीश के कारण सरकार चला रहे हैं। वो जो चाहते हैं, वही सरकार में होता है। 13 करोड़ लोगों का भविष्य चार रिटायर्ड अधिकारों के भरोसे छोड़ दिया गया है, इसलिए ये दुर्गति है।

सवाल : नीतीश कुमार भी तो इतने अनुभवी नेता है, आपको नहीं लगता कि वो भी सब समझ रहे होंगे?

जवाब : ये सब समझने के लिए शारीरिक–मानसिक क्षमता होनी चाहिए, जो नीतीश कुमार में नहीं बची है, लेकिन वो कुर्सी पर बने रहना चाहते हैं। जिसको चलाना है, चलाए, मैं कुर्सी पर बना रहूंगा। न कुछ बोलने की स्थिति में है, न कुछ संभालने की स्थिति में हैं।

सवाल : आप आरजेडी को लेकर कहते हैं लालटेन का तेल खत्म हो गया, वो विधानसभा में 74 सीटें जीते थे, लोकसभा में 22 फीसदी वोट शेयर था?

जवाब : आप रियर व्यू में देख रहे हैं। आरजेडी की ताकत क्या है। उन्हें सभी वर्गों का वोट नहीं है। जो मिलता है, उसमें बहुत बड़ा हिस्सा मुस्लिम समाज का है। सिर्फ इसलिए है कि मुस्लिम समाज बीजेपी को वोट दे नहीं सकता है और विकल्प है नहीं। जिस दिन विकल्प मिल जाएगा वो वोट देना छोड़ देंगे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

Recent Comments